A poem on Coronavirus “कोरोनावली”

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    कोरोनावली


    “कोरोना” के काल मे मत भटको बेकार |
    क्या जाने मिल जाए कब “कोरोना” से तार ||1||


    मुहं को ढक कर मास्क से धोए साबुन से हाथ |
    “कोरोना” उस “धीर” को नही कभी छू पात ||3||


    जो घर के अंदर रहे ,है वही “धीर ,गंभीर” |
    बाहिर जा कर न बचे “राजा, रंक, फकीर ||4||


    “लाकडाऊन” के समय का करो तुम सदुपयोग |
    कला, साहित्य के क्षेत्र मे कर लो नए प्रयोग ||2||


    “कोरोना” को जानिए ज्यो “नाविक” के तीर |
    देखन मे हलका लगे घाव करे गंभीर ||5||


    आपद के इस काल मे ” संयम ” है हथियार |
    संकट जिस से न बढे ऐसा करो व्यवहार ||6||


    “कोरोना” अभी दूर है ,करो न तुम यह भूल |
    न जाने किस रुप मे आ कर दे दे शूल ||7||


    पालन हम मिलकर करे सभी दिशानिर्देश |
    विजयी तभी हो पाएगा अपना यह “भारत”देश ||8||


    यूरोप और अमेरिका या हो चीन , जापान |
    त्राहि – त्राहि चहु ओर है करे कौन ?कल्याण ||9||


    सारा “विश्व” अभी देखता है भारत की ओर |
    यंही से हो गी घोर निशा के बाद सुहानी भोर ||10|


    “कोरोना” से जो लड़ रहे छोड़ के निज सुख-चैन |
    “मधुर” नमन कोटि उन्हे न देखे दिन -रैन ||11||

    “मधुर पाडरी”

                                                    

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