कोरोना कि इस जंग मे प्रस्तुत है ये कविता जो मैंने अपने अनुभव के आधार पे लिखी है, साथ ही कुछ सबक जो मे आप सब से इस कविता ” कोरोना क्रिया ” के माध्यम से साझा करना चाहता हूँ, आशा है आपको पसंद आएगी||
” कोरोना क्रिया “
भूले नहीं हैँ वो दिन
भूली नहीं हैँ वो रातें
जब पी के लोग चाय, चम्मच गिन
करते थे कोरोना हराने की बातें
वक़्त वो ही है अब भी
बदला नहीं है कुछ ज़्यादा
लेकिन अब चाय चम्मच नहीं जी
मज़बूत है सबका इरादा
घर ही मे हैँ अब सब
सीरियल देखते रहते हैँ
आँखों को नम कर कभी जब
नया कुछ सीखते रहते हैँ
कई कर रहे हैँ खेती
कोई लिख रहा है कविता
कहीं मिल नहीं रही मेथी
कोई ढूंढ रहा है पपीता
कोई दूर है अपनों से
किसी कि दूर है रानी
बोतल दूर है किसी से
मिल रहा है सिर्फ पानी
खोई है हमने बहुत जाने
कई होते बीमार देखे है
फिर भी कई लापरवाह, माने
बेवकूफ इंसान देखे हैँ
मुश्किलें हैँ बड़ी ये माना
पर रास्ते भी कई खुले हैँ
अभी तो दिल मे है जाना
“Ash” अभी तो हाथ ही सिर्फ धुले हैँ ||
“” Ash “”
Kya khoob likha hai Ashish ji
Thanku so much