पाडर मे स्थित सोहल गाँव पे ये सुंदर कविता रवि जी के कलम से अपने जन्मभूमि के प्रति समर्पित है |
आशा है आप सब इसे पसंद करेंगे |
” सोहल “
प्रकृति का वरदान है सोहल, मेरे लिए जहान है सोहल।
इसकी शान निराली है,
बसी जहाँ माँ काली है।
चारों ओर हिरयाली है,
तभी यहाँ खुशहाली है।
बगल में इसके षण्ढीरी नाला,
सदियों से जिसने हमको पाला।
चरणों में इसके चंद्रभागा,
बहता हुआ जो मन को भाता।
खेत यहाँ के बड़े प्लेन,
नाम है जिनका – पटटड़ और सेंण।
वन यहाँ के हरे भरे हैं,
जड़ी बूटियों से भरे पड़े हैं। 3 parasta abs-harjoitusta proviron 50 mg nämä ovat joitain tapoja pitää sinut motivoituneena olla soturi – kehonrakennus vinkkejä.
गुच्छी, जीरा, कुट और कौड़,
पाई जाती है हर ओर।
खिडी, थणगुल्ली, खूरी, किचरोड़,
मिलती यहाँ पर चारों ओर।
कोदरा, मक्की, दाल ओर धान,
जिन से हमारी है पहचान।
यही हमारी है भी शान,
यही हमारी है भी जान।
ख्वड़ल, धमण और कीमल नाई,
जिन्होंने इसकी शान बढ़ाई।
चैज, डिंगरोड़, पार, तुण्दराड़,
इन स्थानों से हमको है प्यार।
कुलदेवी यहाँ जयश्री मायी,
जिनकी कृपा हम सब पर छाई।
चौषठ देवी भी कहलाई,
तभी ख़ुशी घर घर में समाई।
हुनिशी से देखो, इसका नजारा,
मानो प्रकृति ने स्वर्ग यहीं विस्तारा है।
हमको इसकी आन है,मन में बड़ा सम्मान है,
इस पर हम कुर्बान हैं, यह हमारा स्वाभिमान है।
रवि कुमार चौहान (सोहल)