नमस्कार मित्रों !आज एक और कविता आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ।मित्रों जैसा की आप जानते हैं कि साम्प्रदायिकता की आग ने हमारे देश को अंदर से खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।आये दिन धर्म के नाम पर लोग एक दूसरे से भिड़ जाते हैं और राष्ट्रीय एकता और अखंडता को गहरा आघात पहुंचाते हैं ।इसी वर्ष हाल ही में दिल्ली के दंगो ने सबको हिला के रख दिया और कश्मीर के इलावा देश के अलग अलग हिस्सों में आये दिन चुनीदा लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है ।इसी बात से प्रभावित होकर कुछ पंक्तियों को रचने का प्रयास किया ।आशा करता हूं कि इन पंक्तियों के माध्यम से समाज में एक अच्छा सन्देश पहुंचेगा और इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद अगर एक भी इन्सान में परिवर्तन आया तो मैं अपने जीवन को सार्थक समझूँगा ।भारत की राष्ट्रीय एकता और अखंडता को समर्पित कविता…..
।। एक अच्छा इंसान बनो ।।
ना कट्टर हिंदू बनो तुम
ना कट्टर मुसलमान बनो
अगर कुछ बन सकते हो तो
एक अच्छा इंसान बनो ।
इस कट्टरता की आग ने
कितने घर जलाए हैं
किसको खबर है दोस्तो
इसने कितने परिवार सताये हैं ।
कितनी पत्नियों को विधवा किया
कितनी माँओं को दुख दिया
कितने बच्चों को अनाथ किया
कितनों का घर बर्बाद किया ?
यह सोच के दिल दहल जाता है
आये जो भी इसके चपेट में
उनका कुछ ना बन पाता है
हर सपना केवल अरमान ही रह जाता है ।
लगता है तुम्हें अगर
यह काम बहुत अच्छा है
तो उस परिवार से पूछो
जिसने खोया अपना बच्चा है ।
तुम्हारी शेर दिली को भड़काया जाता है
तुम्हें इस काम के लिए उक्साया जाता है
परिणाम तम्हें कुछ समझ ना आता है
बस भ्रम में ही जीवन गुज़र जाता है।
तुम समझते हो समाज सेवा
केवल तुमने की
पर यह तो बताओ भैया
फिर मंत्री और सन्तरी ने क्यों शपथ ली ?
देश अगर कानून से चलता है
तो तुम्हारा मन क्यूँ मचलता है
जिनको कुछ ज़िम्मेवारी दी
उन्होँने कोई पीड़ा क्यों न ली ।
अपने दिमाग का कुछ इस्तेमाल करो
ना अपनो का यूं बुरा हाल करो
काम करो कुछ ऐसा
कि अपनों का जीवन dianabol खुशहाल करो ।
समाज की वाह वाही से
ना पेट किसी का भरता है
ईश्वर का काम ईश्वर पर छोड़ो
अच्छा इन्सान ही बुराई से डरता है ।
समाज सेवा के और भी
काम कितने अनेक हैं
जो अपना फर्ज़ निभाए अच्छे से
वही इन्सान जग में नेक है।
धर्म की झूठी ठेकेदारी से
कौन यहाँ महान बन पाया है
जिसने मानव धर्म को जाना
वही अच्छा इन्सान कहलाया है।
मार दिया गर हिन्दू को
तो खुदा का कौन बाशिंदा है
मारा गर मुसलमान को तो
राम कहाँ जिन्दा है ?
जग के सब धर्म हमें
नेकी का रास्ता बताते हैं
धर्म को छोड़ किनारे
हम अपना राग अल्पातेँ हैं ।
हमारा नारा भाईचारा
मानवीय मूल्यों का है सार सारा
नफरतों का बीज बोकर
ना करो इंसानियत से किनारा ।
बुराईयों से गर हम हार जाएँ
तो जीत किस पर करनी है
कट्टरता ही गर अपनाई
तो जैसी करनी वैसी भरनी है ।
साम्प्रदायिकता से हमें
करना हरदम किनारा है
एक अच्छा इन्सान बने हम
यही सब धर्मों का नारा है ।
धन्यवाद!! जय हिंद!! जय भारत!!
~सुरिंदर राणा