यह कविता (हाई स्कूल सोहल के) उन चार होनहार और मेधावी छात्रों के नाम लिखी गई थी जिन की 4अगस्त 2018 को एक दुखद घटना में तालाब में डूबने से मृत्यु हो गई थी |
|| फूल वे जाने कहां हैं ||
जिन से थी गुलशन की शोभा,
“फूल ” वे जाने कहां हैं?
कर के वीराना चमन को,
“फूल” वे जाने कहां हैं?
खोई, खोई हर कली है,
फूल मुरझाए हुए हैं ,
दे के माली के हृदय को,
“शूल”वे जाने कहां हैं?
ऐ हवाओ , ऐ घटाओ, तुम
को कुछ मालूम है क्या?
क्या हुई थी,बागबां से,
“भूल” वे जाने कहां हैं?
जिन के हंसने खेलने के,
दिन अभी तो बस शुरू थे,
झोंक कर सब के नयन में,
“धूल” वे जाने कहां हैं ?
अब खुशी आ जाए भी पर,
नैन सब भीगे हुए हैं,
जो थे हम सब की खुशी के,
“मूल” वे जाने कहां हैं?
जिन से थी सब को उम्मीदें,
नाम वे ऊंचा करेंगे,
आज कर के सब के सपने,
“चूर” वे जाने कहां हैं?
(मधुर पाडरी)