कविता
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
सशक्त उन्हें बनाना है अध्यापक का धर्म निभाना है
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
घृणा से नहीं आदर प्यार से पुकारना है
निर्भीक बनाकर उनमें आत्मविश्वास बढ़ाना है
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
अब अकेले नहीं सबके साथ उन्हें बिठाना है
अधिकार मिले सब को एक समान इस पर ध्यान लगाना है
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
मां-बाप एवं समाज को भी समझाना है
दिव्यांगों को भी अपने दिल में बसाना है
दुख दर्द दूर करके अब उन्हें हंसाना है
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
भिन्न-भिन्न कार्य पद्धति से सिखाना है
दुर्बलता दूर करके अब उन्हें चमकाना है
निक वुजिसिक को उनका आदर्श बनाना है
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
नर सेवा नारायण सेवा का एक ही ठिकाना है
चलना चाहे जो भी पुण्य के राह पे अब इसे अपनाना है
इसीलिए नर सेवा का विजय चौहान भी दीवाना है
गांव गांव में जाना है दिव्यांगों को जगाना है
सशक्त उन्हें बनाना है अध्यापक का धर्म निभाना है
विजय चौहान