Poet: रवि कुमार चौहान (सोहल)
मेरे मन में पाडर के प्रति जो प्यार है जो सम्मान है और जो छवि मेरे मन में बसी है उसी का चित्रण मैंने आज इस कविता के माध्यम से किया है। और मुझे लगता है कि यही वास्तविकता भी है। अपने कम शब्दों में इसकी महत्ता बताना तो कठिन है परन्तु फिर भी मैंने काफ़ी कुछ बताने की कोशिश की है। आशा है आप सब को पसंद आएगी।
“मेरा पाडर महान”
धरती के एक कोने में है, मेरा प्यारा पाडर महान
तुलना इसकी जिससे भी करें हम, सबसे ऊँचा है इसका स्थान।
भारत को उन्नत करने में, इसका है अद्भुत योगदान
क्योंकि इसकी पर्वत की चोटियों के नीचे, है अद्भुत रत्नों कि खान।
यह शिव कि धरती है, चंडी की तपोस्थली है
यहां दुष्टता और दुष्टों कि, कभी भी ना चली है।
इसकी मिट्टी के कण कण में है, देशभक्ति का संस्कार
तभी तो इसके जन जन हैं, देश के लिए वफादार।
जीवन यहां का बड़ा ही निर्मल और सीधा सदा है
लेकिन उन्नती के शिखरों पर चढ़ने का बड़ा इरादा है।
ये ऊँचे ऊँचे पर्वत बस यूँ ही नहीं खड़े हैं
इसके आँचल में जाकर देखो, ओषधियों के भंडार पड़े हैं।
प्रकृति के अद्भुत नजारे, यहाँ स्थान स्थान पर मिलते हैं
जिन्हें देख देख हमारे मन भी, ख़ुशी से खिल उठते हैं।
अपना पाडर न्यारा है, दुलारा है, प्राणो से भी प्यारा है
क्योंकि इसकी ही छत्र छाया में हमने, अपना जीवन गुजारा है।
आत्मनिर्भर था मेरा पाडर, है भी, और रहेगा भी
बड़ी बड़ी कठिनाईयों का सामना, किया भी, और करेगा भी।
है धन्यवाद उस ईश्वर का, जिसने हमको पैदा यहाँ किया
जहाँ प्रकृति ने हमको, हर चीज से समृद्ध किया।
रवि कुमार चौहान (सोहल)