A Poem in Paddri Dialect (हाय कैसा इय संसार हन्ना)

A Poem in Paddri Dialect (हाय कैसा इय संसार हन्ना)

यह तब की बात है जब 28 से 30जुलाई 1989 को देव धरती पाडर में चंद्रभागा के तट पर अठोली के स्थान पर एक भव्य “विराट हिन्दू सम्मेलन” का आयोजन हुआ था, पाडर के इतिहास में पहली बार इतना बड़ा आयोजन हुआ था जिसमें समस्त पाडर की जनता ने पूरे उत्साह और उमंग के साथ भाग लिया था,इस सम्मेलन में विश्व हिन्दू परिषद् के अनेक विद्वानों ने यहां पधार कर अपने ओजस्वी भाषणों और प्रवचनों से पाडर की जनता को अभिभूत किया था। जिस की यादें अभी तक पाडर की जनता के हृदयों में ताज़ा हैं, जो विद्वान इस सम्मेलन में पधारे थे उनमें माननीय इंद्रेश कुमार जी और डॉ जगपूर्ण दास जी प्रमुख थे जिन के भाषणों ने जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया था।इस आयोजन का उद्देश्य हिंदु समाज में एकता तथा जागरूकता लाना, साथ ही समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर कर एक आदर्श हिंदू समाज की स्थापना करना था। इस में अलग-अलग सत्रों में अलग-अलग कार्यक्रम होते थे, अंतिम दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए जिसमें हमने अपने पाडर की संस्कृति को दर्शाने वाला पाडरी गीत प्रस्तुत किया था जिसे सर्वाधिक पसंद किया गया था। इस अवसर पर मैंने एक कविता इसी परिप्रेक्ष्य में लिखी थी जिस को तब वहां प्रस्तुत करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका था उसे मैं आपकी सेवा में आज पेश कर रहा हूं, कदाचित इस कविता की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी कि तब थी , आशा करता हूं कि आप सभी विद्वान जन इस को पढ़ कर मेरा मार्गदर्शन करें गे । कविता का शीर्षक है

।।हाय कैसा इय संसार हन्ना।।

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ज़ाड़ हर यक मौंह्ण खुदगर्ज हन्ना
ज़ाड़ सौभी बेईमैंनियर् मर्ज़ हन्ना,
न अपंण याद कसै फ़र्ज़ हन्ना,
बस पैसै समे सौभी प्यार हन्ना,
हाय कैसा ईय संसार हन्ना……..

ज़ाड़ भाई भैय्यर खूनर् प्यासा,
ज़ाड़ शि्यक्मल भी नैंइ कोई आसा,
ईज बब्स रोज म्योना बनबासा,
रोज बाब कोय्यर माल मार खन्ना ,
हाय कैसा ईय संसार हन्ना………..

ज़ै लोभी हन्ना ज़ै मोही हन्ना
ज़ै कामी हन्ना ज़ै क्रोधी हन्ना,
पाखंडी हन्ना ज़ै ढोंगी हन्ना,
धर्मर सैइ ठेकेदार हन्ना।
हाय कैसा ईय संसार हन्ना………

Suggested Read:

रोज पीने न ढक्लै शर्म हिनी,
चाहे तेज़ हिनी या नर्म हिनी
पर सैंटि पींण्य् ज़रूर हिनी,
चाहे नगद हन्ना या उधार हन्ना।
हाय कैसा ईय संसार हन्ना………

असै क्यौना सम्मेलन कुड़यर वतै,
अस यक बंणुल सौब ऐड़िर वतै,
ज़ंह्ण खैमी हिनी तंह्णै दूर करे,
वरना ऐ सौब बेकार हन्ना।
हाय कैसा ईय संसार हन्ना……

Watch the video of the same poem below!

हिय्ंण औनै महात्मा दूरल दूरल,
विद्वान पुजै ज्यंणै कुड़ल कुड़ल,
ज़ौहर आह्ण बुव्नै अस तौहर करुल,
ऐंकर तौंवै सत्कार हन्ना।
हाय कैसा ईय संसार हन्ना………..

Suggested Read:

GREF in Paddar: Poem

 

अज़ै आज़ अस ऐ कसम उठौंल,
अस शराब घिरौंल अस दाज हटौंल,
अस हिन्दू समाज आदर्श बंणौल,
अतै बिय्च़ हिय्ंण उपकार हन्ना।
हाय कैसा ईय संसार हन्ना……….

सौब भेदभाव तुअस अपंण मिटाए,
हिन्दू संगठित समाज बंणाए,
न अपंण माल तुअस कसै खिंडाए,
अंउ ” मधुर” ऐयै बार बार बुवन्ना।
हाय कैसा ईय संसार हन्ना………

(मधुर पाडरी)

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