दोस्तो अतीत के पन्नों को पलटते हुए एक बार फिर मेरी नजरें एक पन्ने पर आकर टिक गई और मैं यादों में खो गया जब लगभग तीस बरस पहले सावन के महीने में हम किसी त्यौहार के अवसर पर अपनी पुहाली जो कब्बन धार में है गए हुए थे उस ज़माने में “च़ौउर्र” “ग्यौकर्र” आदि धारों के यह पर्व हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होते थे और हम पूरे साल बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे बच्चे ,जवान ,नर नारी सभी बड़े शौक से धारों में जाते थे और आनंद लेते थे, जी भरकर दूध दही घी और पनीर खाते थे और फिर धारों में घूम घूम कर प्रकृति का आनंद लेते हुए दूध घी को पचा जाते थे। ऐसे ही एक बार मेरे साथ मेरे आदरणीय मित्र और पाडर के जाने माने गायक और कलाकार मास्टर शादी लाल जी “हंसमुख” भी मेरे साथ थे और हम सोहल की सुंदर धारों में घूम रहे थे मौसम कुछ ऐसा सुहाना था कि घूमते घूमते एक गीत के बोल स्वतः मेरे मुंह से निकले और चलते चलते कुछ ही क्षणों में एक गीत का रूप ले लिया और हंसमुख जी की मधुर बांसुरी की तान पर यह गीत उन धारों में गूंजने लगा।इस गीत की पंक्तियों में जो भाव व्यक्त किए गए हैं वे किसी के भी हो सकते हैं क्योंकि सभी के जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं।
आप भी इस गीत का आनन्द लीजिए ।
धन्यवाद 🙏
“(मधुर पाडरी)”
(गीत)
धारै धारै हाय औंऊं हंडना अकेला,
ज्यंणै कौद ,भोल जानी त्यंण म्यंण मेला।
दिय्न गा महीना गा,लंघी गौर साला,
गा न तै बस यक त्येंण खयाला।
ऐ तै हमेश जानी मैंइ समे रेहला,
ज्यंणै कौद भोल जानी त्यंण म्यंण मेला।१
तौऊ तै बगेर जानी दिय्ल नैंई ओ लगना,
ध्याड़ी ,ध्याड़ी फियरना तै राती,राती जगना ,
की ऐ खिडौर जानी, तैंई नंवां खेला,
ज्यंणै कौद भोल जानी, त्यंण म्यंण मेला।२
भाड़ी -भाड़ी ऐच़्छ़ी थैकी ऑ न तू यारा,
त्यंण बगेर म्यंण ज़ीण दुशवारा,
कर तू सबेल बड़ी भोरी अबेला,
ज्यंणै कौद भोल जानी त्यंण म्यंण मेला ।३
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शौंणरा महीना लगा झ़ड़ बड़ा भारा,
फेरी बी हिय्शा न म्यंण दिय्लरा धि्यारा ,
प्रेम्रा बरसात कर तू तंव ऐ हिशेला,
ज्यंणै कौद भोल जानी त्यंण म्यंण मेला।४
बिश ख्वंण गीत तौउ “मधुर” खुणाना,
दिय्लर कहानी औंउ गीतौ ब्यच़ै गाना,
खुव्ंण फैरि छ़ंण तौउ मेल कि न मेला,
ज्यंणै कौद भोल जानी त्यंण म्यंण मेला ।५
धारै धारै हाय औंउ हंडना अकेला,
ज्यंणै कौद भोल जानी त्यंण म्यंण मेला ।
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(मधुर पाडरी)