पाडर एक सागर है, इसकी तारीफ कुछ पंक्तियों के माध्यम से करना सागर से एक चम्मच निकाले पानी की तारीफ करने जैसा है| परन्तु मेरा मानना है कि उस एक चम्मच पानी का स्वाद पूरे सागर के स्वाद से भिन्न नहीं होगा|
अतः ये आशा है मुझे कि ये कविता पाडर के दर्शन करने मे आप सभी को एक छोटी सही परन्तु एक मेहत्वपूर्ण झलक देने मे मदद करेगी|
“पाडर”
जम्मू कश्मीर मुकुट है भारत देश का
पाडर उस मुकुट मे जड़ा हीरा
शान है जम्मू के किश्तवाड़ मे ये भूमि
उत्तर मे जांस्कार ने है जिसे घेरा|
हवा से जिसके बातें करें पानी चेनाब का
कोख से जिसके जन्मे फीते, गुछी, जीरा
पहाड़ जहाँ ऊँचे, मैदान जहाँ के समतल
जहाँ झीलें है चमकीली, बर्फ जैसे मलमल
लोग जहाँ के भोले, तभी तो खुश है बम भोले
जहाँ बसी है मा चंडी, त्रिनेत्र अपने खोले
नागौँ क़ी है ये भूमि, देवीयों का है ये स्थान
मा सिंघासन हैँ चिटो, जहाँ सुमचाम मे नीलम खान
नाले जहाँ निराले, चश्मे जहाँ के चुम्बक
झरने क़ी जहाँ झम झम, लोगों को करें उत्सुक
खान पान जहाँ का ख़ास, त्यौहार जहाँ के तीखे
जहाँ वेश है अनूठा, रस्मो से जहाँ हम सीखें
पूरब मे जिसके गांधारी, पश्चिम मे जहाँ सज़ार
ऐसे पावन धरती के, बेटे हैँ सौ हज़ार
सर्दी जहाँ क़ी काली, गर्मी जहाँ क़ी सीता
वसंत के जहाँ गोविन्द, पतझड़ क़ी हैँ मीरा
जम्मू कश्मीर मुकुट है भारत देश का
पाडर उस मुकुट मे जड़ा हीरा
शान है जम्मू के किश्तवाड़ मे ये भूमि
उत्तर मे जांस्कार ने है जिसे घेरा||
आशीष