“पाडरी बोली का वर्तमान”
किसी भी स्थान कि संस्कृती एक पेड़ के समान होती है| जिसकी शाखाएं उसके त्यौहार, खान पान, रीती रीवाज़ और हस्तशिल्प होतें हैं| भाषा उस पेड़ कि जड़ के भांति है, जिसके बिना इस समाज रुपी पेड़ का विकास संभव नहीं है| हम सभी पत्ते मात्र हैं जो इस जीवन रुपी नदी मे प्रवाह कर रहें हैं|जिस प्रकार पत्ते सूर्य से ऊर्जा का संचार समस्त पेड़ मे करते हैं उसी प्रकार हमें भी अपनी प्रतिभा से इस समाज रुपी पेड़ को ऊर्जावान बनाना है, परन्तु पेड़ के लिए ये सब संभव तभी हो पाता है जब वो अपनी जड़ से पानी और अन्य अनिवार्य मिनरल्स पत्तों तक पहुंचाए|
जब जड़ ही नहीं रहेगी तो पत्ते भी नहीं उगेंगे अर्थात, मात्र भाषा के विकास के बिना एक समाज रुपी पेड़ का निर्माण असंभव है| अतः हम सभी का ये दायित्व बनता है कि हम अपनी मात्र भाषा को संरक्षित करें, इसके विकास के प्रति अपना योगदान दें| वरना वो दिन दूर नहीं कि हम जल्द ही अपनी संस्कृति अपने कल्चर को खो देंगे|
आज हमारा पाडर भी इसि चौराहे पर खड़ा है, जहाँ एक और हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैँ वहीँ दूसरी और अपनी पाडरी बोली को शीग्रता से विलुप्त होतें देख रहें हैं| हमारी कोठीयां, हमारे घिराट, हमारे बर्तन, कम्बल, चकले सभी नये ज़माने कि चपेट मे आ अपना दम घोंट रहें हैं| इनके साथ साथ सैंकड़ो कि संख्या मे हमारे पाडरी शब्द भी आहुति लगातार चढ़ रहें हैं|और ये कोई हवाई बात नहीं, हाल ही मे यानि 2015 मे Kashmir University के कुछ scholars ने ये शोध मे पता लगाया कि अब सिर्फ 70% पाडर के लोग ही पाडरी बोली का अपने घरों मे इस्तेमाल करते हैं| बाकि लोग दूसरी मुख्य भाषाएं जैसे कि हिंदी और उर्दू का इस्तेमाल घरों मे करना पसंद करते हैं|
इस शोध मे ये भी पता चल पाया है कि पाडर मे आज कल 60% Parents ही अपने बच्चों के साथ पाडरी भाषा को उपयोग मे लाना पसंद करते हैं जबकि यही संख्या 80% है जब वे पाडरी बोली को अपने Grandparents के साथ उपयोग मे लाते हैं| ये एक साफ सन्देश हैं कि आज के हमारे Parents अपने बच्चों को दूसरी मुख्य भाषा ही बचपन से सिखाना चाहते हैं| जो एक अच्छा संकेत पाडरी बोली के लिए नहीं माना जा सकता| इस शोध मे एक और बात पता चली है कि मंदिरो मे या अन्य धार्मिक संस्थानों मे 85% उपयोग हिंदी या उर्दू भाषा को लाया जाता है जबकि पाडरी बोली यहाँ भी 10% ही उपयोग मे लायी जाती है|
इस शोध को एक लेख के रूप मे श्री जसवंत जी ने बहुत ही अच्छे तरीके से Daily Excelsior समाचार पत्र मे प्रकाशित भी करवाया है आप बाकि कि जानकारी वहां से भी Online Search कर के भी पढ़ सकते हैं|
आज के समय बहुत ही काम लोग पाडर के हैं जो पाडरी बोली को उपयोग मे लाते हैं. हमारी इस बोली के विलुप्तकरण कि इस रफ़्तार को देखकर Ministry of Minority Affairs Govt. of India ने इसे Vulnerable category of languages कि सूची मे 2014 मे डाल दिया है|भाषा के जानकारों का मानना है कि आज पूरे विश्व मे 7000 भाषाओं को उपयोग मे लाया जाता है जिनमे से आधी से ज़्यादा विलुप्त होने के कगार पर हैं| इनका ये भी मानना है हर दो हफ्तों मे इनमे से एक भाषा उपयोग मे आना बंद हो जाती है|Bhasha Research and Publication Centre, India कि रिपोर्ट के अनुसार 1960 मे हमारे देश भारत मे 1100 भाषाएँ बोली जाती थी जिनमे से 220 से ज़्यादा भाषाएं अभी तक विलुप्त हो चुकि हैं|
इस से ये अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि कुछ ठोस कदम ना उठाये गए तो हम भी बहुत ही जल्द अपनी पाडरी बोली को खो देंगे| हमारी पाडरी बोली भदरवाही बोली समूह का एक छोटा अंग है जिसमे अन्य भाषाएँ भी आती हैं जैसे कि भलेसी और भादरवाही|
भाषाओं के इस परिवार को मे हम इस चार्ट के रूप मे भी समझ सकते हैं|
अभी हम सब के लिए अनिवार्य है कि हम किसी ना किसी रूप मे अपनी बोली को बचाने का प्रयास करें| आज हमारे पाडर मे पाडरी मे बने गाने और रैप सांग्स बहुत प्रचलित हो रहें हैं जो इस दिशा मे एक अच्छा संकेत है| इसके साथ साथ हमारे कइ महानुभावी लोग कविताएं और गीत भी पाडरी बोली मे लिख रहें हैं| आज हमारी पाडरी बोली के संरक्षण हेतु एक शब्दकोष कि ज़रूरत है जिसमे कइ Scholars और रुचिकार लोग अपनी मेहवात्वपूर्ण योगिता निभा सकते हैं| कइ प्रयास, गत वर्षो मे किये भी गए हैं परन्तु इस्पे और बल देने कि ज़रुरत है|
You can also read an article on Paddri Dialect by Mandeep Chauhan. Here is a link:
मेरा आजकल के parents से भी ये आग्रह है कि वो अपने बच्चों को बचपन से ही पाडरी बोली सिखाएं| पाडरी बोली को बोलते समय किंचित भी ना शर्माएँ| ये गर्व का विषय है शर्म का नहीं| विरोधाभास ये भी है आज ये लेख पाडर का वो लेखक लिख रहा है जिसे पाडरी बोली बोलने मे थोड़ी सी दिक्कत आती है| मेरा मानना है कि एक पीड़ित ही बेहतर तरीके से अपनी हानि का अनुभव कर सकता है| अतः वेदना प्रकट करते हुए मेरा आप सभी से निवेदन है कि आप मेरी गलती ना दोहरायें और पाडरी बोली को आगे ले जाने मे अपना प्रयास जारी रखें और इस पाडरी समाज कि जड़ को और मज़बूत बनायें|
बहुत ही जल्द पाडरी समुदाय को पाडरी जनजाति कि मान्यता भी प्रदान होने वाली है परन्तु इस से जन्मने वाली सुविधाओं का फ़ायदा हम तब ही सही मायने मे उठा सकते हैं जब हम अपनी बोली, अपने त्यहारों और अपनी संस्कृति के प्रगति के प्रति सचेत रहें|
“धन्यवाद”